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तरक्की को चाहिए नया नजरियाःशैलेंद्र जायसवाल

एंटरप्रन्योर बनने के लिए सेल्फ कांफिडेंस जरूरी, स्टार्टअप से लिख सकते हैं तरक्की की नई गाथा

वाराणसी। डीआरडीओ के पूर्व एक्जिक्टिव डायरेक्टर एवं सृजन संचार के निदेशक शैलेंद्र जायसवाल ने कहा है कि तेजी से बदल रही दुनिया में यूथ को नए जमाने के हिसाब से तैयार होने की जरूरत है। सरकारी नौकरियों का दौर अब खत्म होता जा रहा है। सरकार अपना काम निजी क्षेत्रों को सौंपना चाहती है। ऐसे में इनोवेशन, इनक्यूबेशन, स्टार्ट-अप एंड एंटरप्रन्योरिशप ही नवाचर के लिए तरक्की के आधार बनेंगे। सृजन संचार अब अशोका इंस्टीट्यूट स्टूडेंट्स और उद्यमियों के साथ मिलकर तरक्की की नई गाथा लिखेगा।

श्री जायसवाल मंगलवार को पहिड़या स्थित अशोका इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी एंड मैनेजमेंट में टेक वेगैंजा-2022 के शुभारंभ के बाद स्टूडेंट्स और टीचर्स को संबोधित कर रहे थे। अशोका सेंटर फॉर इनोवेशन, इनक्यूबेशन, स्टार्ट-अप एंड एंटरप्रन्योरिशप विषय पर आयोजित सेमिनार में उन्होंने कहा कि स्टार्टअप शुरू करने के लिए यूनिक आइडिया की जरूरत होती है। स्टार्टअप खासतौर पर उन लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं जो अपनी जिंदगी में कुछ अलग और हटकर करना काम करना चाहते है। ऐसे में एंटरप्रन्योरिशप यूथ को दूसरों से अलग बनाती है। आमतौर पर हम उन चीजों के बारे में नहीं सोचते जिन्हें हम पकड़ सकते थे। एंटरप्रन्योर एक ऐसा इंसान होता है जो एक छोटे से आइडिया पर काम करके उसे एक बड़े उद्योग में बदल देता है। यह आसान नहीं है, लेकिन बहुत कठिन भी नहीं है। सामान्य सोच रखने वाला इंसान कभी एंटरप्रेन्योर नहीं बन सकता। इसके लिए एक्स्ट्रा आडनरी बनना पड़ेगा। एंटरप्रन्योरिशप के लिए ज्यादा मेहनत ही नहीं, सब्र की जरूरत होती है। एंटरप्रन्योर वो व्यक्ति होते हैं जो अपने सपनों को हकीकत की जमीन पर उतार देने का हौसला रखते हैं। किसी एक आइडिया पर काम करते हुए उसे बड़े बिजनेस में बदलने के लिए जुनून की जरूरत होती है। सोचने का तरीका थोड़ा अलग होना चाहिए। साथ ही समस्याओं को हल करने की कूबत भी होनी चाहिए। एंटरप्रन्योर बनने के लिए सेल्फ कांफिडेंस जरूरी है। फेल होने का डर तो कतई नहीं होना चाहिए। जिन काम को करना चाहते हैं उसके बारे में संपूर्ण ज्ञान जरूरी है। टारगेट और लक्ष्य के साथ रिस्क लेना माद्दा होना चाहिए। जो लोग सिर्फ भाग्य को अहमियत देते हैं वो एंटरप्रन्योर कभी नहीं बन सकते हैं। विश्वास सिर्फ मेहनत पर किया जाना चाहिए। अगर ये सभी विशेषताएं यूथ में मौजूद हैं और अपने काम को पूरी मेहनत व लगन से करते हैं तो सारी की सारी खूबियां स्वतःआपके अंदर आ जाएंगी।

स्टूडेंट्स से इंट्रैक्ट करते हुए शैलेंद्र जायसवाल ने यह भी कहा कि अपने देश में 32 हजार करोड़ खिलौनों की जरूरत है और भारत सिर्फ आठ हजार खिलौनों का उत्पादन कर पाता है। बाकी खिलौने चीन भेजता है। बनारस में खिलौना उद्योग में अपार संभावनाएं हैं। हमारे देश में बटन भी चीन से आती है। इसे बनाना शुरू कर दें तो बड़ा स्टार्टअप शुरू हो सकता है। उन्होंने बताया कि बनारस के मंदिरों के चढ़ाए जाने वाले फूल और माला से अगरबत्ती, सेंट, परफ्यूम के अलवा जैविक खाद बनाई जा सकती है। इलेक्ट्रिक टेंम्पो, बाइक बना सकते हैं और छाता भी। सृजन संचार यूथ को उनकी रुचियों के मुताबिक नए एनोवेशन के लिए यूनिक आइडिया दे सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में 280 करोड़ आंखें हैं और उनके लिए हम सस्ते प्रेग्रेसिव लेंस तैयार करें तो यह कारोबार धूम मचा सकता है। बनारसियों के पास जो विज्वल थिंकिंग है वैसा दुनिया में कहीं नहीं है। बिना टीम के कोई भी स्टार्टअप कामयाब नहीं हो सकता है। स्टार्टअप के लिए साझा प्रयास जरूरी है। आगामी एक दशक बाद देश के तमाम विश्वविद्यालयों पर ताले लग जाएंगे क्योंकि आने वाला दौर नए आइडिया और इनोवेशन का है। नए सोच और नए नजरिए से आइडिया को इंप्रूव करेंगे तभी कामयाब हो सकेंगे।

इससे पहले अशोका इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर डॉ सारिका श्रीवास्तव ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया। बाद में टेक वेगैंजा-2022 में स्टूडेंट्स की माडल प्रदर्शनी का डीआरडीओ के पूर्व एक्जिक्टिव डायरेक्टर शैलेंद्र जायसवाल अवलोकन किया। साथ ही स्टूडेंट्स से अपने विचार भी साझा किए। टेक वेगैंजा-2022 प्रदर्शनी बुधवार को भी यूथ के अवलोकनार्थ खुली रहेगी। इस अवसर पर एमबीए के डीन सीपी मल्ल, फार्मेसी के प्रधानाचार्य बृजेश सिंह, प्रो.एसके शर्मा, डीन इंजी.एसएस कुशवाहा ने विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन सिविल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष धर्मेंद्र दुबे ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने  में शर्मिला सिंह, पल्लवी सिंह, अनुजा सिंह, दीपांसी दीपक आदि ने अहम भूमिका अदा की।

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