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कला संसार नहीं, आंदोलन रचती हैं बनारस की पूनम


सिद्धहस्त चित्रकार पूनम ने अपनी जिंदगी में जितने झंझावतों को झेला है, उतने ही किरदार इनके चित्रों में भी नजर आते हैं। ढूंढेंगे तो पाएंगे कि इनके चित्रों में हर किरदार का एक अतीत है, उसका वर्तमान है और भविष्य भी है। हर चेहरे और हर रंग को एक तय समय और निश्चित परिवेश में आसानी से देखा और पढ़ा जा सकता है। सिर्फ वर्तमान ही नहीं, भविष्य में जो होने वाला है, उसके सूत्र और संकेत भी आप देख सकते हैं।


विजय विनीत

(वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)

हर समय की अपनी कहानी होती है, जिसे हम अपने समय में सुनते हैं। जब समय की दीवार खड़ी होती है तो अपने भी पराये हो जाते हैं। हमारी कहानियों में जमाने की दिलचस्पी तब होती है, जब वह किसी कला के जरिये हमारे पास आती है। तब उस समय की दीवार में स्वतः कई खिड़कियां खुल जाती हैं। कोई आस्था की खिड़की होती है तो कोई जिज्ञासा की और कुछ कही गई बातों की खिड़की और कुछ अनकहे दास्तों ने खिड़की। बनारस की पूनम राय ऐसी ही फनकार हैं जिनके चित्रों में हम अनगिनत खिड़कियां पाते हैं। सभी खिड़कियां बिना परदे की होती हैं जो जिंदगी की जद्दोजहद को लेकर कई नई बातें भी बताती हैं।

एक वो भी समय था जब पूनम एक हंसती-खिलखिलाती और खेलती-बोलती हुई लड़की का नाम हुआ करता था। अपने परिवार की सबसे ज्यादा भाग्यशाली मानी जाने वाली लड़की अब शांत है, उदास और धीर-गंभीर भी। खुद के पैरों पर दौड़ने वाली इस लड़की को चलने के लिए अब वाकर का सहारा लेना पड़ता है। जानते हैं क्यों? चित्रकार बनने से पहले पूनम दहेज के लिए सताई गई एक ऐसी लड़की थी जिसकी आंखों के सारे सपनों को ससुराल वालों ने तहस-नहस कर दिया था। दहेज की खातिर पूनम को उनके ससुराल वालों ने छत की तीसरी मंजिल से नीचे फेंक दिया था। वह मरीं तो नहीं, मगर अधमरी जरूर हो गईं। इस हादसे में इनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। साथ ही जिंदगी भर के लिए दोनों पैर पैरलाइज्ड हो गए। यह वाक्या साल 1997 का है। ससुराल वालों के जुल्म और ज्यादती के वक्त ही डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे। यह भी बता दिया था कि पूनम अब कभी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकतीं। न विस्तर से उठ सकती हैं, न चल सकती हैं। 17 साल तक वह बिस्तर पर पड़ी रहीं पूनम ने यह सब सुना कि उसको उसको बड़ा धक्का लगा लेकिन समय का पहिया फिर घूमा और एक नई सुबह आई।

साल 2015 में पूनम की जिंदगी की नई शुरुआत हुई। ऐसी शुरुआत जिसने मजबूत हौसला दिया और समाज में खड़ा होने व लड़ने का हुनर भी। पूनम के नए जीवन के सफर में सहयात्री बने इनके पिता बिंदेश्वर राय और भाई नरेश कुमार राय और अपनों ने हर कदम पर साथ दिया तो मंजिल आसान होती चली गई। अब पूनम एक ऐसा नाम है जिसे बनारस में अदम्य साहस का पर्याय माना जाता है। साथ ही मिसाल के तौर पर लिया जाता है इनका नाम। पूनम बनारस की एक ऐसी सिद्धहस्त चित्रकार हैं जिन्हें साल 2016 में गिनीज बुक आफ रिकार्ड ने आफिशियल अटेम्ट मेडल देकर सम्मानित तो उसके अगले साल 2017 में वल्ड रिकार्ड इंडिया, मोस्ट यूनीक फेस क्रिएट से नवाजा। अनगिनत अवार्ड और सम्मान पाने वाली चित्रकार पूनम के साहस की सराहना भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक कर चुके हैं।

सिद्धहस्त चित्रकार पूनम ने अपनी जिंदगी में जितने झंझावतों को झेला है, उतने ही किरदार इनके चित्रों में भी नजर आते हैं। ढूंढेंगे तो पाएंगे कि इनके चित्रों में हर किरदार का एक अतीत है, उसका वर्तमान है और भविष्य भी है। हर चेहरे और हर रंग को एक तय समय और निश्चित परिवेश में आसानी से देखा और पढ़ा जा सकता है। सिर्फ वर्तमान ही नहीं, भविष्य में जो होने वाला है, उसके सूत्र और संकेत भी आप देख सकते हैं।

समकालीन कलाकारों के आकार, बिंब और रंग अपने अतीत अथवा भविष्य के बारे में बहुत कुछ नहीं कहते। कुछ कलाकारों में अगर थोड़ा बहुत अतीत अथवा भविष्य के बारे में कथन है, तो वह इतना अमूर्त होता है कि उसका नाद पता ही नहीं चलता। दर्शक चाहकर भी उस नाद को न सुन बपाते हैं, न अपने वर्तमान के साथ जोड़कर देख पाते हैं। लेकिन पूनम के हर कलाकृति की अपनी एक नियति है, जो लोगों को अपनी ओर खींचती है।

एक सवाल यहां आकर अहम हो जाता है कि हम किसी चित्रकार की कलायात्रा से खुद को जोड़कर कैसे देखते हैं? चित्रकार के रंगों में सिर्फ समय का सूत्र मिलना ही काफी नहीं होता। इससे भी ज्यादा जरूरी यह होता है कि लोग उस चित्रकार की कला यात्रा से जुड़ें, ताकि उसकी आकांक्षा और दृष्टि की गलियारा छितिज तक दिखे। पूनम के चटक रंगों को देखेंगे तो समाज की विविधता के हर रंग और हर आकार मौजूद पाएंगे। ऐसे रंग जिसमें नयेपन का सुखद अहसास होता है। पूनम की कला में हर समय और हर काल की जटिलताएं भी साफ-साफ परलक्षित नजर आती हैं, जिसमें कल्पना का संसार दिखता है तो साहस भी। पूनम इसमें एक बात और जोड़ती हैं। वह कहती हैं, “सिर्फ कला मे ही इतनी ताकत है जो इंसान की आजादी, बराबरी और इंसाफ पर बात करती है। हमारे रंगों में इंसान के लिए इंसाफ पर ‘दो टूक’ बात होते देख सकते हैं। इंसान के हौसलों को बुरी तरह तोड़ने और झकझोरने के बावजूद ईमान की बात मिलती है।”

करीब एक दशक की कला यात्रा में पूनम के चित्रों की कई प्रदर्शनियां आयोजित हो चुकी हैं। इनके चित्रों की दुनिया अद्भभुत और अनूठी है। इन्होंने हिमाचाल प्रदेश के मनाली में 50 फुट लंबे और चार फुट ऊंचे कैनवस पर चित्रकारी कर “लांगेस्ट लाइव पेंटिंग मैराथन” का रिकार्ड अपने नाम दर्ज किया है। इनके साथ आठ सदस्यों की टीम ने तीन घंटे के अंदर यह कीर्तिमान हासिल किया। दरअसल, पूनम ने बनारस की कला यात्रा को न सिर्फ समृद्ध किया है, बल्कि एक बड़ी पहचान भी दी है। खास बात यह है कि इनकी पेंटिंग में भौतिक तथ्य से अलग, पूनम हमेशा अपनी आकांक्षा में बड़ी दिखती हैं। वह कहतीं हैं, “हुनर से बनी हूं, शरीर के अंगों से नहीं…!”

पूनम राय बनारस के दौलतपूर में रहती हैं। यह वो इलाका है जहां कोई भी चीज आसान नहीं है। न गरीबी आसान है, न अमीरी। न रास्ता आसान है, न मंजिल। न संघर्ष की गाथा आसान है और न ही सफलता के बाद की कहानी। जाहिर है, सालों की कला यात्रा में इनके सामने कई तीखे मोड़ भी आए हैं। और अगर चित्रकार ने खुद से सीखने की शुरुआत की हो, तो शायद मुश्किलें ज्यादा बढ़ जाती हैं। लेकिन पूनम राय ऐसा नहीं मानतीं। वह कहती हैं, “हमने इंसानों के अनगिनत चेहरे देखे हैं। इन चेहरों को अपने कला संसार में रचा भी है जिसमें तमाम खिड़कियां खुलती हैं। जब कोई पेंटिंग बनाना शुरू करती हूं, बनाती चली जाती हूं। कैनवस पर हमारे हाथ रुकते ही नहीं। समय भी नहीं रोक पाता हमारी तुलिका को। यह एक तरह का रियाज ही है। हमने अपनी खुद की परंपरा विकसित की है। आलोचना की भाषा में कहें तो ‘अपना मुहावरा’। अगर हम अपने मन को साध लें, तो दुनिया में कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे हम सीख नहीं सकते। अगर कला सच्ची है तो उसमें आपका मन जानी-पहचानी जगह को भी अप्रत्याशित ढंग से देखने का सुख बटोरता है। जाने-पहचाने चेहरों के बीच अपनों-परायों का दर्द भी कई मर्तबा हमारी कला का प्रांगण बन जाता है। इसी प्रांगण में बसा है हमारे कला का सार और हमारी कला का संसार।”

अगर देखा जाए, तो चित्रकार पूनम राय की कला यात्रा की शुरुआत उस दिन हो गई थी, जब समाज को पढ़ने और समझने का हुनर सीखा। वह कहती हैं, “हमारी बचपन से एक चाहत थी कि कुछ अलग हटकर रचनात्मक काम करूं। यही जुनून हमारी ताकत बना और जिस काम में हाथ लगाती, उसे पूरा करके ही दम लेती।”

पूनम का जन्म 8 मार्च 1974 को महावीर जी कि जन्मस्थली वैशाली (बिहार) में हुआ था। इनके पिता लोक निर्माण विभाग में इंजीनियर थे। पिता का तबादला होता तो शहर बदल जाता। स्कूल बदल जाता और लोग बदल जाते, समाज बदल जाता। अलग-अलग ठौर और अलग-अलग ठिकानों पर राजकुमारी की मनिंद जीवन गुजारने वाली पूनम राय अपने पिता और भाई की लाडली थीं। वह लाड़-दुलार में पली-बढ़ी थी। इन्हें इसलिए भी भाग्यमान माना जाता था, क्योंकि जिस रोज इनका जन्म हुआ था, उसी रोजो इनके पिता की नौकरी भी लगी थी। पिता ने अपनी सारी खुशियां पूनम की झोली में डाली। मकान, गाड़ी, नौकर और ढेर सारी सुविधाएं। इनके पिता स्वर्गीय बिंदेश्वर राय ने बेटे की तरह पूनम को प्यार दिया। पिता का तबादला बनारस में हुआ तो पूनम बनारस की हो गईं। साल 1995 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से पेंटिंग में ग्रेजुएशन आनर्स किया।

चित्रकार पूनम राय कहती हैं, “हौसलों की उड़ान बहुत ऊंची होती हैl हमारी जिंदगी में जब समय की दीवार खड़ी हुई तो सुकून की सभी खिड़कियां एक झटके में ही बंद हो गईं। साल 1996 में हमारा पल्लू एक ऐसे लड़के के साथ बांध दिया गया जो सिर्फ इंटर पास था, लेकिन शादी इंजीनियर बताकर कराया गया था। ससुराल वाले न सिर्फ फरेबी थे, बल्कि मतलबी, दहेज लोभी और जालिम भी थे। दूसरी लड़कियों को तरह हमने भी ढेरों सुनहरे सपने देखे थे, जो ससुराल पहुंचते ही तार-तार हो गए। असलियत पता चला तो हमारे पांवों की जमीन ही खिसक गई। दहेज के लिए रोज-रोज प्रताड़ित किया जाने लगा। हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि दहेज के जिस दावन का नाम बचपन में सुन रखा था, उसकी शिकार मैं खुद हो जाऊंगी। मायके से बार-बार दहेज लाने की जलालत के बीच ससुराल वालों ने हमें मौत के घाट उतारने के लिए तिमंजिली इमारत से नीचे फेंक दिया। तब समय ने ससुराल की एक खिड़की हमेशा के लिए बंद कर दी।”

पूनम राय को अब चुनौतियों का सामना करना सीख गई हैं। इन्हें हर हालात से लड़ना आता है। अपने पैरों पर ही नहीं, समाज में भी खड़ा होना आता है। मंजिल पाने के लिए समय की खिड़कियों को खोलना आता है। मुसीबत के दौर में अगर कोई चट्टान की तरह उनके साथ खड़ा रहा तो वह उनके बड़े भाई थे। पिता के नाम को चिरजीवी बनाने के लिए उन्होंने वीआर फाउंडेसन की स्थापना की। यहीं से खुली समय की एक और नई खिड़की। साथ ही शुरू हुई एक नई जिंदगी। पूनम कहती हैं, “हमने अपने हौसले को कभी डिगने नहीं दिया। दो मर्तबा इंडिया वर्ल्ड रिकार्ड बनाया। अनगिनत सम्मान मिले। सबने सराहा। हमें फक्र है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने हमारे हौसले में नए पंख लगाए। मोदी जी से मुलाकात हुई तो उन्हें अपनी कलाकृति भी भेंट की। बाद में पीएम ने हमें खत भेजा और हमारे हौसले को सराहा।”

पूनम राय की जिंदगी में झांकने पर पर हमारे समाज का वह सीन उभरता है, जिसमें एक खिड़की बंद मिलती है तो समय के साथ दूसरी तमाम खिड़कियां एक साथ खुल जाया करती हैं। इन्हीं खिड़कियों के उजाले में पूनम के चित्र समय के महत्व और मकसद को उद्घाटित करते हैं। तभी तो इनके चित्रों में बनारस के घाटों का मर्मज्ञ दृश्य नजर आते हैं तो कभी भगवान शिव, गणेश, हनुमान जी, कृष्ण के मनमोहक चेहरों को ,तो कभी बुद्ध का मौन भी साफ-साफ दिखता है। इनकी कला यात्रा में हर जीव और प्राणी एक-दूसरे से जुड़े हुए लगते हैं। चित्रों में कहीं पेड़ों की हरियाली दिखती है तो कहीं बारिश, हवा और आकाश में सूर्य की सतरंगी किरणें हिलोरा मारते हुए चलती हैं। इनकी पेंटिंग देखकर मन में तमाम सवाल उमड़ते-घुमड़ते उपजते हैं। कई बार पूनम खुद से सवाल करती हैं कि पूनम की रात में चांद सबके लिए उगता है, लेकिन धरती पर रहने वाले हर इंसान के लिए उस चांद का मतलब क्यों बदल जाता है? सताई हुई औरतों के लिए अलग चांद और खुशहाल लोगों के लिए एक अलग?

पूनम राय की कला संसार इंसान की अस्मिता की, श्रम की, औरत की आजादी की पहचान का एक जरिया बनता है। वह जिंदगी की खिड़कियां इस अंदाज में खोलती हैं, जिसके भीतर व्यक्ति का मन अभिमान के तहखानों में कैद नहीं होता। अलब्ता मन, आत्मा और देह की एक संपूर्ण सृष्टि खुद मनुष्य के भीतर मौजूद दिखती है। पूनम के नए सपनों में आज का पल भी है और आने वाला कल भी है।

पूनम राय के संघर्ष को कला यात्रा का एक खास किस्म का बड़ा आंदोलन कहा जा सकता है। ऐसा आंदोलन जो दिल को छूने वाला संदेश देता है। पूनम कहती हैं, “मैंने अपने हर चित्रों में यह कहने की कोशिश की है कि जिंदगी एक हारी हुई लड़ाई नहीं है। हमारी चिंता परिंदों को उन घोसलों को बचाने की है, जिनके दरख्तों को बेरहमी से काटा जा रहा है। मुझे लगता है कि पेड़ बचेंगे तो ही कैनवास पर हरियाली भी दिखेगी और तभी मन को सुकून भी मिलेगा। कला संसार रचने की प्रेरणा पेड़-पौधे और फूल-पत्तियां भी तो देती हैं।”

चित्रकार पूनम बताती हैं, “जिंदगी की त्रासदियों ने मुझे अंदर तक हिला दिया। एक कलाकार के नाते मेरा कर्तव्य है कि मैं अपने कला-कर्म के जरिए समाज को कुछ नया और बड़ा संदेश दे सकूं। ऐसे संदेश जो कुछ बिंबों और रंगों के साथ खिलते हैं। जानती हूं कि जिद और जिजिविषा ही इंसानियत की नई भाषा गढ़ती है। हमारे चित्रों में खुशी है तो चिड़ियों का कलरव भी है। प्रेम है तो परंपरा भी। हमारी कला जीवंत आत्मा को खोजने की यात्रा भी है।”

“हमारी कला यात्रा का मकसद तभी पूरा होगा जब हम अपनी कलाकृतियों के माध्यम से आने वाले कलाकारों को उनकी प्रेरणा स्रोत बन सकूं। उम्मीद करती हूं कि इसी जीवन में समाज के लिए कुछ अच्छा कर जाऊं। तभी तो बीआर पाउंडेशन के माध्यम से बच्चों को पेंटिंग, योग, नृत्य के अलावा लड़कियों को आत्म सुरक्षा के लिए ताईक्वांडो सिखा रही और उन्हें आत्म निर्भर भी बनाने की कोशिश कर रही हूं। अपने जीवन के सारे रंग उन्हीं बच्चों में देख लेती हूं, जो हमारे हिस्से में नहीं आए।” कमाल का अनुभव जबर्दस्त कांफिडेंस के दम पर पूनम राय हर वक्त अपनी कला यात्रा में बहुत सारे कोने बनाती दिखती हैं या फिर कोने से जाले हटाती दिखती हैं। फिलहाल इनकी कला यात्रा जारी है और वह यात्रा अपने समय के साथ चल रही है।

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