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ज्ञान और भरोसा पैदा करता है स्वामी विवेकानंद का विचार

वाराणसी। देश के वरिष्ठ पूर्व आईएएस आफिसर राधेश्याम जुलानिया ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के आदर्शों और मूल्यों से प्रेरणा लेने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि युवा पीढ़ी उनके विचारों को पढ़े, समझे और आत्मसात करे। बिना ज्ञान के इंसान अच्छा संप्रेषक नहीं बन सकता है। स्वाध्याय के बिना प्रभावी संप्रेषण संभव नहीं है।
श्री जुलानिया स्वामी विवेकानंद जयंती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर वाराणसी के अशोका इंस्टीट्यूट और भोपाल के रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वेबिनार में बोल रहे थे। प्रेरणा विमर्श कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ऐसी हस्ती थे जिन्होंने दुनिया भर में हिन्दू धर्म को ख्याति दिलाई। वह सिर्फ चिंतक ही नहीं, शास्त्रीय संगीत के पुरोधा भी थे। स्वामी जी चाहते थे कि सभी धर्मों का सम्मान किया जाए। ऐसा धर्म जो इंसान को इंसान से जोड़ने की बात करता है। मौजूदा दौर में युवा चिट्ठी तक नहीं लिख पाता हैं। ऐसे में युवाओं को पुस्तकें जरूर पढ़नी चाहिए। भाषा का ज्ञाता होना चाहिए। विवेकानंद को पढ़ने से आत्मविश्वास पैदा होता है। ज्ञान और भरोसा पैदा होता है। ज्ञान से ही पढ़ने और सुनने की बात निकलती है। अच्छी बात यह है कि आज घर बैठे पुस्तकें उपलब्ध है। विवेकानंद शिक्षा को ऐसा प्रशिक्षण मानते थे जिससे संकल्प शक्ति की अभिव्यक्ति और उसके प्रवेग को संतुलित और लाभप्रद बनाया जाए। वह पाश्चात्य विज्ञान को वेदांत के साथ समायोजित करना चाहते थे। शिक्षा प्रणाली में नवीन प्राण शक्ति का संचार और देश के नवनिर्माण की दिशा में प्रयास करने की वकालत करते थे।
श्री जुलानिया ने कहा कि ज्ञान का कोई शार्टकट नहीं होता। बिना ज्ञान के न कोई अच्छा वक्ता बन पाता है और न ही कर्ता। शब्दावली अच्छी होगी तभी आप अच्छा बोल पाएंगे। उन्होंने स्टूडेंट्स को सलाह दी कि वह जब भी किसी कार्यक्रम में जाएं तो अट्रेक्टिव जरूर दिखें। हमारे विचारों में क्लीयर्टी भी जरूरी है। हमें सभी धर्मों का आदर करना चाहिए। साथ ही समाज में यह भावना पहुंचाना चाहिए कि विश्व में एक ही ईश्वर है और हर कोई उसी की अराधना कर रहा है। संप्रेषण के लिए अच्छी पुस्तकें पढ़ना और उसे याद करना चाहिए। साथ ही प्रसंगों को रोचक बनाने का तरीका भी आना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हम स्वामी विवेकानंद को पढ़ लें तो जीवन के बहुत सारे सूत्र मिल जाएंगे। कोई भी इनेवेशन तत्काल नहीं होता। हमेशा थोड़ा-थोड़ा और धीरे-धीरे होता है। यह जीवन यात्रा है। यह यात्रा एक दिन की नहीं है। अच्छी अभिव्यक्ति के लिए अच्छी प्रस्तुति जरूरी है। ड्रेस और बाडी लेंगुवेज बेहतर होना चाहिए। अभिव्यक्ति के लिए शब्द और मंच चाहिए, लेकिन कंटेंट भी बेहतर होना चाहिए।
मध्य प्रदेश के एमएसएमई विभाग और उद्योग विभाग के कमिश्नर पी.नरहरि ने कहा कि विवेकानंद बेहतर संप्रेषक थे। मौजूदा दौर कम्युनेशन का दौर है। सोशल मीडिया हमारे बेडरूम तक पहुंच गया है। मोबाइल के माध्यम से हमारे व्यवस्था का ऐसा अंग बन गया है कि चौबीस घंटे में से कई घंटे हम उस पर पढ़ते और खोजते रहते हैं। लेकिन हम क्या बेहतर संप्रेषक बन पाए हैं, यह बड़ा सवाल है। जब नए विचारों का सृजन होता है, तभी वह विचार ज्यादा समय तक जिंदा रह पाता है। महात्मा गांधी का प्रभाव देश भर में पहुंचा तभी देश को आजादी मिल पाई। पढ़ना, लिखना, संवाद और विचार मंथन करना जरूरी है। ऐसे विचारों का सृजन हो, जो जीवन में प्रभाव डाल सके। विचार ही कर्तव्यों के प्रति सजग और प्रेरित करते हैं। जो उद्यमशील है, वह कभी गरीब नहीं हो सकता है। जागृत होना और खुद को समझना चाहिए।
भोपाल के मंडीदीप इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष
डा.राजीव अग्रवाल ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के विचारों को आत्मसात करने पर ही सत्य की राह पर खुद को और दूसरों चलाया जा सकता है। अच्छा वक्ता होने के लिए ज्ञान जरूरी है। पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। ज्ञान से ही आप महान प्ररेक और संप्रेषक बन सकते हैं।
अशोका इंस्टीट्यूट की निदेशक डा.सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि स्वामी विवेकानंद का पूरा जीवन बड़ी प्रेरणा देता है। हमारी यही अपेक्षा है कि हमारे युवा स्वामी जी प्रेरणा लें और अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए हमेशा अपने ज्ञान को बढ़ाते रहें।
वेबिनार में मध्य प्रदेश प्रेस क्लब के एक्जीक्यूटिव एडिटर एवं संयुक्त सचिव अजय प्रताप सिंह, टैगोर विवि की एनएसएस इकाई के गब्बर सिंह ने भी विचार व्यक्त किए। आभार रेखा गुप्ता और वेबिनार का कुशल संचालन अशोका इंस्टीट्यूट की असिस्टेंट प्रोफेसर पल्लवी सिंह ने किया। वेबिनार में वाराणसी के अशोका इंस्टीट्यूट के अलावा भोपाल, रायपुर, सतना और चित्रकूट के कई विश्वविद्यालयों के स्टूडेंट्स ने भाग लिया।

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