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अशोका इंस्टीट्यूट में विश्व जल दिवस पर सेमिनार पाताल में सूख रहे पानी को बचाने के लिए जल्द सीखना होगा प्रबंधन

वाराणसी। अशोका इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी एंड मैनेजमेंट के वाइस चेयरमैन अमित मौर्य ने कहा कि बढ़ती आबादी के साथ पानी का अभाव बड़ा संकट बन गया है। पाताल में सूख रहे पानी के बचाने के लिए इसके प्रबंधन के बारे में बहुत कुछ सीखना ज़रूरी है। अशोका इंस्टीट्यूट पूर्वांचल का ऐसा संस्थान है जहां 50 हजार वर्ग फीट पानी का संरक्षण किया जाता है। इस पानी का इस्तेमाल भूगर्भ को रीचार्ज करने के लिए किया जाता है।

श्री मौर्य मंगलवार को विश्व जल संरक्षण दिवस के अवसर आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि अशोका इंस्टीट्यूट में जल संरक्षण के लिए इस तरह की व्यवस्था की गई है जिससे आसमान से गिरने वाला एक बूंद पानी बेकार नहीं जाता है। उन्होंने कहा कि जल प्रबंधन की व्यवस्था हमें अपने राजाओं से सीखनी चाहिए, जिन्होंने देश में तमाम झीलों, तालाबों और सरोवरों का निर्माण कराया। चीन के बाद भारत दुनिया में सबसे अधिक आबादी (18 फीसदी) वाला देश है, लेकिन उपलब्ध पीने योग्य कुल पानी का मात्र चार फीसदी ही भारत में मौजूद है। यह आंकडे़ स्वत: ही जल संकट की भयावह स्थिति प्रकट करते है। चेन्नई जैसे कई शहरों मे पानी की भयंकर कमी ने हमारे देश में जल संकट की तरफ एक बार फिर से लोगों का ध्यान आकर्षित किया है।

श्री मौर्य ने कहा कि नीति आयोग ने जून 2019 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके अनुसार देश की दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई सहित कुल 21 शहरों का ग्राउंड वाटर लेवल कुछ ही सालों में शून्य हो जाने की संभावना व्यक्त की गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि साल 2030 तक देश की 40 फीसदी आबादी को पीने का पानी उपलब्ध नहीं रह जाएगा। जल का सदुपयोग और वर्षा जल का सरंक्षण का कार्य सामूहिक स्तर पर करना होगा। हमें अपने बच्चों और आने वाली पीढ़ी को जागरूक करना होगा। उनमें पौधरोपण, जल संरक्षण और पर्यावरण को स्वच्छ रखने की आदत डालनी होगी, तभी हमारी धरती भावी पीढ़ी के रहने लायक रह सकेगी।

इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर डा.सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि अप्रत्याशित जनसंख्या वृद्धि, जल संसाधनों का दुरूपयोग, जल प्रबंधन की दुर्व्यवस्था और जलवायु परिवर्तन जल संकट की त्रासदी के प्रमुख कारण है। बारिश की मात्रा निरंतर कम हो रही है, लेकिन इसे ही जल संकट का एक मात्र कारण नहीं माना जा सकता है। इजराइल जैसे देश में सिर्फ 25 सेमी बारिश होती है। इसके बावजूद वहां जीवन अच्छी तरह चल रहा है। इजराइल के लोगों ने बेहतर जल प्रबंधन तकनीक विकसित कर पानी की एक-एक बूंद को संरक्षित करके इस समस्या पर नियंत्रण पा लिया है। जल समस्या की इस भयावह स्थिति से बचने के लिए हमें भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है।

इंस्टीट्यूट के रजिस्ट्रार असीम देव ने कहा कि हमारे देश में 15 फीसदी जल का उपयोग होता है। बाकी 85 फीसदी बहकर समुद्र में चला जाता है। शहरों और उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ नदियों के जल को प्रदूषित करके पीने योग्य रहने नहीं देते। जल की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार प्रति व्यक्ति पीने योग्य जल की उपलब्धि जो साल 2000 में 2300 घनमीटर थी। साल 2025 तक 1600 घन मीटर ही रह जाने की उम्मीद है। अगर हम जल प्रबंधन पर कोई ठोस कदम उठाना चाहते हैं तो सबसे पहले खेती में प्रयोग होने वाले पानी के प्रबंधन पर गौर करना होगा। दुनिया में पानी की सबसे ज्यादा बर्बादी भारत में की जाती है और यह सब लंबे समय तक नहीं चलने वाला। हमारे देश मे आबादी की तुलना में पहले से ही पानी कम मात्रा में उपलब्ध है।

सिविल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष धर्मेंद्र दुबे ने कहा कि बनारस में पहले भूगर्भ जल 40-50 फीट पर था जो अब 250 मीटर नीचे खिसक गया है। आने वाले समय में स्थिति बहुत ज्यादा विस्फोटक होने वाली है। उन्होंने कहा कि अवैज्ञानिक तरीके से भूमिगत जल के दोहन ने स्थिति को और भयावह बना दिया है। भूगर्भ जल को साझा प्रयास से ही बचाया जा सकता है और तभी “जल है तो कल है” वाली  उक्ति चरित्रार्थ हो पाएगी। ट्रेनिंग एवं प्लेसमेंट विभाग के प्रभारी ओपी शर्मा ने कहा कि आज हम आधुनिकता की अंधी दौड़ में अपने भौतिक सुख के लिए भूगर्भ जल का अंधाधुंध दोहन करते जा रहे हैं। इसका दुष्परिणाम हमारी अगली पीढ़ी को अवश्य ही झेलना पड़ेगा। वह दिन दूर नहीं जब पानी के लिए यहां मार-काट मचेगी। लिहाजा इस दिशा में हम सबको साझा प्रयास करने होंगे और  इस बाबत ईमानदारी के साथ शुरू करने होंगे। तेजी से सूख रही धरती के गर्भ में पानी के बचाने के पीपल, बरगद और जामुन के पेड़ भी लगाए जाएं।

सेमिनार में डा.बृजेश सिंह, संदीप मिश्र, अरविंद कुमार, राजीव कुमार यादव, अर्जुन कुमार, मनु कुमार सिंह, राजेंद्र तिवारी, पंकज कुमार, डा.वंदना दुबे, अनुजा सिंह, शर्मिला सिंह आदि ने भूगर्भ जल के महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन सोनी ओझा ने किया।

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