मुनाफे के साथ सुधारे सेहत Uncategorized by The Ashoka News - December 16, 2021December 24, 20210 स्टीविया की खेती भारत में पूरे साल की जा सकती है। स्टीविया पेरूग्वे का पौधा है। वहां यह बेहया की तरह अपने-आप उग जाता है। यह पौधा सामान्यत: शक्कर से तीस गुना मीठा होता है। स्टीविया के पत्ते का स्वाद मीठा होता है। इसके पत्तों में इंसुलिन बैलेंस करने की शक्ति होती है। एक कप काफी या चाय में इस चूर्ण की आधे से एक ग्राम मात्रा काफी होती है।स्टीविया हर तरह के साइड इफेक्ट से मुक्त है। यह एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल का भी काम करता है। इसकी खेती के लिए बैंकों से ऋण भी मिलता है।हालांकि इसके लिये अर्धआद्र एवं अर्ध उष्ण जलवायु काफी उपयुक्त मानी जाती है। 110 सेन्टीग्रेड तक के तापमान में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। स्टीविया की खेती के लिये उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त होती है। ग्लूकोसाइड के आधार पर विभिन्न जलवायु के लिए सनफ्रट्स लिमिटेड, पूना ने इसकी तीन प्रजातियों का विकास किया है। एसआरवी 123 स्टीविया की इस किस्म में ग्लाईकोसाइड की मात्रा 9 से 12 प्रतिशत तक पायी जाती है। साल में पांच बार इसे काटा जा सकता है। स्टीविया की एसआरवी 512 प्रजाति उत्तर भारत के लिये ज्यादा उपयुक्त है। साल भर में इसकी चार कटाइयां ली जा सकती हैं। इसमें ग्लूकोसाइड की मात्रा 9 से 12 प्रतिशत तक होती है। तीसरी प्रजाति है एसआरवी 128। यह किस्म सम्पूर्ण भारत वर्ष के लिए सर्वोत्तम है। इसमें ग्लूकोसाइड की मात्रा 21 प्रतिशत तक पायी जाती है। इसे भी साल में चार बार काटा जा सकता है।रोपड़ एवं उर्वरक : स्टीविया का रोपड़ कलम पद्धति से किया जाता है। स्टीवियाके पौधों का रोपड़ मेड़ों पर किया जाता है। इसके लिए 15 सेमी ऊंचाई के दो फीट चौड़े बेड बना लिया जाता है। कतार से कतार की दूरी 40 सेमी और पौधों से पौधों की सेमी रखते हैं। दो बेड़ों के बीच डेढ़ फीट की जगह नाली या रास्ते के रूप में छोड़ देते हैं। स्टीविया की पत्तियों का सीधे उपभोग किया जाता है। इसके चलते इसकी खेती में किसी भी तरह की रसायनिक खाद अथवा कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। एक एकड़ में इसकी फसल को तत्व के रूप में नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा क्रमश: 110 : 45 : 45किग्रा की जरूरत पड़ती है। इसकी पूर्ति के लिये 70 से 80 कुंतल बर्मी कम्पोस्ट अथवा 200 कुंतल सड़ी गोबर पर्याप्त होती है। फसल की कटाई के बाद 0.2 प्रतिशत गोमूत्र का छिड़काव और एक किग्रा सीपीपी (काऊ पैट पिट) खाद 150 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए।सिंचाई : स्टीविया की फसल सूखा सहन नहीं कर पाती है। इसे लगातार पानी की जरूरत होती है। सर्दी के मौसम में भी दस दिन के अंतराल पर और गर्मियों में हर हफ्ते सिंचाई करनी चाहिए। स्टीविया की सिंचाई का सबसे उपयुक्त साधन स्प्रिंकलर है।रोग एवं कीट नियंत्रण : स्टीविया की फसल में किसी भी तरह का रोग अथवा कीड़ा नहीं लगता है। कभी-कभी पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं। बोरान तत्व की कमी के चलते ऐसी स्थिति पैदा होती है। इसके नियंत्रण के लिए छह प्रतिशत बोरेक्स का छिड़काव किया जा सकता है। कीड़ों की रोकथाम के लिए नीम के तेल को पानी में घोलकर स्प्रे किया जा सकता है।पत्तियों की तुड़ाई: स्टीविया की पत्तियों में ही स्टीवियोसाइड पाये जाते हैं। इसलिये पत्तों की मात्रा बढ़ायी जानी चाहिये। समय-समय पर फूलों को तोड़ देना चाहिए। अगर पौधे पर दो दिन फूल लगे रहें और उनको न तोड़ा जाए तो पत्तियों में स्टीवियोसाइड की मात्रा में ५० प्रतिशत तक घट जाती है। फूलों की तोड़ाई, पौधों को खेत के रोपाई के 35, 45, 60, 75, और 90 दिन के बाद पहली कटाई करनी चाहिए। 40, 60 और 90 दिनों पर फूलों को तोड़ने की जरूरत होती है। स्टीविया की पहली कटाई पौध रोपने के करीब चार महीने बाद की जाती है। बाकी कटाई 90-90 दिनों के अंतराम पर की जाती है। तीन साल बाद स्टीविया के पत्तियों में स्टीवियोसाइड की मात्रा घट जाती है। कटाई में पौधे को जमीन से छह से आठ सेमी ऊपर से काट लिया जाता है। पत्तियों को टहनियों से तोड़कर धूप में अथवा ड्रायर से सुखा लेते हैं। सूखी पत्तियों को ठंडे स्थान में शीशे के जार में अथवा एयर टाइट पालीथिन पैक में भर देते हैं।